दिवाली महोत्सव 2022: दिवाली महोत्सव की तिथि और पूजा मुहूर्त
दिवाली के शुभ अवसर पर, लोग हिंदू देवता लक्ष्मी, धन की देवी, और ज्ञान के देवता गणेश की पूजा करते हैं, और शांति, सुख, धन और समृद्धि के लिए आशीर्वाद मांगते हैं। ज्यादातर जगहों पर दिवाली या दीपावली पांच दिनों तक मनाई जाती है, जो धनतेरस से शुरू होकर भाई दूज पर समाप्त होती है। हालांकि, ड्रिक पंचांग के अनुसार, दिवाली एक दिन पहले महाराष्ट्र में गोवत्स द्वादशी पर शुरू होती है, जो धनतेरस से एक दिन पहले मनाई जाती है। इस बार गोवत्स द्वादशी 21 अक्टूबर शुक्रवार को पड़ रही है।
दिवाली कब है? : इस साल दिवाली 24 अक्टूबर, सोमवार को मनाई जाएगी।
दीपावली पूजा मुहूर्त : द्रिक पंचांग के अनुसार, लक्ष्मी पूजा मुहूर्त शाम 6:53 बजे शुरू होगा और रात 8:16 बजे (एक घंटा 23 मिनट की अवधि) पर समाप्त होगा। प्रदोष काल शाम 5:43 बजे से शुरू होकर 8:16 बजे समाप्त होगा, जबकि वृषभ काल शाम 6:53 से 8:48 बजे तक है। अमावस्या तिथि 24 अक्टूबर को शाम 5:27 बजे शुरू होगी और 25 अक्टूबर को शाम 4:18 बजे समाप्त होगी।
निशिता काल मुहूर्त : द्रिक पंचांग के अनुसार, लक्ष्मी पूजा के लिए निशिता काल मुहूर्त 25 अक्टूबर को रात 11:40 बजे से 12:31 बजे तक है।
दीपावली हिंदू धर्म का सबसे बड़ा त्योहार है दीपावली का त्यौहार अच्छाई की बुरी पर विजय के रूप में मनाया जाता है यह प्रथा प्राचीन काल से चली आ रही है। दीपावली को अधर्म पर धर्म की विजय और अंधकार पर रोशनी की विजय के प्रतीक के रूप में मनाया जाता हैं। श्रीरामचंद्रजी जब रावण को हरा कर लंका विजय के बाद अयोध्या लौटे तब अयोध्यावासियों ने अयोध्या में दीप जलाकर उनका स्वागत किया था। तभी से यह त्योहार प्रचलित हुआ है। यह भी मान्यता है कि महाराज युधिष्ठिर के राजसूय यज्ञ की पूर्णाहुति इसी दिन हुई थी, तब से यह पर्व मनाया जाता है। कुछ लोग दीपावली को ही भगवान महावीर का निर्वाण दिन मानते हैं।
दीपावली स्वछता और सुंदरता का संदेश लेकर आती है दीपावली से कुछ दिन पहले ही लोग अपने अपने घरों की सफाई करते हैं नए कपड़े सिलवाते हैं और गहने खरीदते हैं। घर घर मिष्टान्न और पकवान बनाए जाते हैं। इस प्रकार दीवाली के आगमन के पूर्व सभी जगह उत्साह और उल्लास की लहर दौड़ जाती है। आश्विन मास के कृष्णपक्ष की त्रयोदशी से कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया (भैयादूज) तक दीपावली धूमधाम से मनाई जाती है। हर घर में दीपक, मोमबत्तियाँ और बिजली बल्ब की लड़ियां जलाए जाते हैं। पटाखे और आतिशबाजी से वातावरण गूंज उठता है। अमावस के दिन ही दीवाली है। इस दिन व्यापारी लोग हिसाब-किताब की नई बहियों की पूजा करते हैं। दीपावली के दिन कुछ लोग जुआ खेलते और मदिरा का सेवन करते हैं। दीपावली में पटाखे भी जलाये जाते हैं। इस पोल्लुशण तो फैलता ही है कभी कभी भयंकर अग्निकांड भी होते हैं। इन बुराइयों से हमें बचना चाहिए।
दीपावली का त्यौहार धनतेरस से सुरु हो कर भाईदूज तक मनाया जाता है
1. धनतेरस : दीपावली पर्व का शुभारंभ धनतेरस से होती हैं. जैसा कि हमें नाम से ही स्पष्ट होता हैं इस दिन धन की देवी माता लक्ष्मी और भगवान धन्वंतरि का पूजन किया जाता है. भारत में इस दिन लोग अपनी दूकान और व्यवसाय वाली जगह पर माता लक्ष्मी की पूजा करते हैं. इस दिन पर सोना खरीदने का महत्व भी हमारे हिंदू धर्म ग्रंथों में विस्तृत रूप में बताया गया हैं.
२ .रूपचौदस : इस पर्व का दूसरा दिन रूपचौदस के रुप में मनाया जाता हैं. इस दिन महिलाएं बेसन से बने उबटन का इस्तेमाल कर अपने रूप को निखारती हैं इसीलिए इसे रूपचौदस कहा जाता हैं. इस विशेष दिन से जुड़ी अन्य कहानियां भी हैं जिसके अनुसार इस दिन को छोटी दीवाली, रूप चौदस और काली चतुर्दशी भी कहा जाता है. ऐसा माना जाता हैं कि कार्तिक माह कि कृष्ण चतुर्दशी पर विधि-विधान से पूजा करने वाले व्यक्ति को सभी पापों से मुक्ति मिल जाती है. इसी दिन शाम को दीपदान की प्रथा है जिसे यमराज के लिए किया जाता है.
3. दीपावली : दीपावली का त्यौहार इस क्रम में तीसरे दिन पर आता हैं. यह त्यौहार कार्तिक माह की अमावस्या को मनाया जाता हैं. यह एक मात्र ऐसा हिन्दू त्यौहार हैं जो कि अमावस के दिन मनाया जाता हैं. इस दिन लोग माता लक्ष्मी का पूजन करते हैं, एक दूसरे से मिलते हैं और उन्हें मिठाइयां बांटते हैं. पूरे भारत में लोग इस दिन घरों में दिए जलाते हैं. पूजन के बाद बच्चे पटाखे आदि जलाते हैं.
4. गोवर्धन पूजा : चौथे दिन गोवर्धन और धोक पड़वा के रूप में मनाया जाता हैं. इस दिन सभी अपनों से बड़ों के घर जाकर आशीर्वाद लेते हैं. और इस दिन गौमाता की भी पूजा की जाती हैं.
5. भाईदूज : दीपावली के उत्सव का अंतिम दिन भाईदूज का होता हैं. यह भाई-बहन का त्यौहार हैं. इस दिन बहन अपने भाई को अपने घर पर बुलाती हैं. और उसकी लम्बी उम्र की कामना करती हैं. भाई अपनी बहन को इस त्यौहार पर उपहार भेट करता हैं. इस पर्व से जुडी एक कथा भी हिन्दू पुराणों में मौजूद हैं. जिसके अनुसार सूर्यपुत्र यमराज और उनकी बहन यमुना में अपार स्नेह था. यमुना यम से बार-बार निवेदन करती कि इष्ट मित्रों सहित उसके घर आकर भोजन करो. अपने कार्य में व्यस्त यमराज बात को टालता रहा. कार्तिक शुक्ला का दिन आया. यमुना ने उस दिन फिर यमराज को भोजन के लिए निमंत्रण देकर, उसे अपने घर आने के लिए वचनबद्ध कर लिया.
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